– चुनाव चिन्ह आदेश, 1968 का लाभ उठाने से रोका The गडविश्व नई दिल्ली (New Delhi) १४ : पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (आरयूपीपी) को अनुपालन हेतु बाध्य करने के लिए 25 मई, 2022 को शुरू की गई पूर्ववर्ती कार्रवाई के क्रम में मुख्य निर्वाचन आयुक्त, राजीव कुमार और निर्वाचन आयुक्त अनूप चन्द्र पाण्डेय की अगुवाई में भारत निर्वाचन आयोग ने आज 86 और निष्क्रिय पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (आरयूपीपी) को सूची से हटा दिया तथा अतिरिक्त 253 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (आरयूपीपी) को ‘निष्क्रिय आरयूपीपी’ के रूप में घोषित किया। अनुपालन न करने वाले इन 339 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (आरयूपीपी) के विरुद्ध की गई इस कार्रवाई से 25 मई, 2022 से चूक करने वाले ऐसे आरयूपीपी की संख्या बढ़कर 537 हो गई है।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29क के अंतर्गत सांविधिक अपेक्षाओं के अनुसार प्रत्येक राजनीतिक दल को अपने नाम, प्रधान कार्यालय, पदाधिकारियों, पते, पैन में किसी भी प्रकार के बदलाव की संसूचना आयोग को बिना किसी विलंब के देनी होती है। 86 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल (आरयूपीपी) या तो संबंधित राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों के संबंधित मुख्य निर्वाचन अधिकारियों द्वारा किए गए प्रत्यक्ष सत्यापन के बाद या डाक प्राधिकारी से संबंधित पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (आरयूपीपी) के पंजीकृत पते पर भेजे गए अवितरित पत्रों/नोटिसों की रिपोर्ट के आधार पर निष्क्रिय पाए गए हैं। यह स्मरण दिलाया जाता है कि भारत निर्वाचन आयोग ने आदेश दिनांक 25 मई, 2022 और 20 जून, 2022 के जरिए क्रमशः 87 आरयूपीपी और 111 आरयूपीपी को सूची से हटा दिया, इस तरह सूची से हटाए गए आरयूपीपी की संख्या कुल मिलाकर 284 हो गई थी।
अनुपालन न करने वाले 253 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (आरयूपीपी) के विरुद्ध यह निर्णय सात राज्यों बिहार, दिल्ली, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों से प्राप्त रिपोर्टों के आधार पर लिया गया है। ये 253 आरयूपीपी निष्क्रिय घोषित किए गए हैं क्योंकि उन्हें भेजे गए पत्र/नोटिस का उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है और न तो किसी राज्य के विधानसभा का आम चुनाव और न ही वर्ष 2014 एवं 2019 में संसदीय चुनाव लड़ा है। ये पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल वर्ष 2015 से 16 से अधिक अनुपालन कदमों के संबंध में सांविधिक अपेक्षाओं का पालन करने में असफल रहे हैं और उन सब की यह चूक लगातार जारी है।
यह भी नोट किया जाता है कि उपरोक्त 253 दलों में से, 66 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल (आरयूपीपी) ने वास्तव में चुनाव चिन्ह आदेश 1968 के पैरा 10बी के अनुसार एक समान चुनाव चिन्ह के लिए आवेदन किया था और संबंधित निर्वाचनों को नहीं लड़ा था। यह ध्यान देने योग्य है कि एक राज्य के उक्त विधानसभा निर्वाचन के संबंध में कुल उम्मीदवारों में से कम से कम 5 प्रतिशत उम्मीदवार को रखने के लिए एक वचनबंध के आधार पर आरयूपीपी को एकसमान (कॉमन) चुनाव चिन्ह का विशेषाधिकार दिया जाता है। ऐसी पार्टियों द्वारा निर्वाचन लड़े बिना अनुमत्य पात्रताओं का और निर्वाचन पूर्व उपलब्ध राजनीतिक सुविधाओं (छूट) का लाभ उठाने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। यह वास्तव में निर्वाचन लड़ने वाले राजनीतिक दलों की भीड़ को भी बढ़ाता है और मतदाताओं के लिए भ्रमित करने वाली स्थिति भी पैदा करता है।
आयोग यह नोट करता है कि राजनीतिक दलों के पंजीकरण का प्राथमिक उद्देश्य धारा 29क में निहित है जिसमें किसी संगठन (एसोसिएशन) को एक राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत होने के बाद मिलने वाले विशेषाधिकारों और लाभों को सूचीबद्ध किया गया है और ऐसे सभी लाभ और विशेषाधिकार सीधे तौर पर निर्वाचन प्रक्रिया में उक्त भागीदार से संबंधित हैं। तदनुसार, पंजीकरण की शर्त के लिए आयोग द्वारा जारी किए गए राजनीतिक दलों के पंजीकरण के लिए 13(ii)(ई) दिशानिर्देशों में निम्नानुसार व्याख्या है:
“घोषणा की जाती है कि पार्टी को अपने पंजीकरण के पांच साल के भीतर निर्वाचन आयोग द्वारा संचालित चुनाव लड़ना चाहिए और उसके बाद उसे चुनाव लड़ना जारी रखना चाहिए। (यदि पार्टी लगातार छह साल तक चुनाव नहीं लड़ती है, तो पार्टी को पंजीकृत पार्टियों की सूची से हटा दिया जाएगा)।”
आयोग इस बात से अवगत है कि गठन (वर्ष) की शर्तों का अनुपालन, जो अधिदेशित और स्व-स्वीकृत प्रावधानों का एक संयोजन है, वित्तीय अनुशासन, औचित्य, सार्वजनिक उत्तरदायित्व, पारदर्शिता बनाए रखने के लिए अनिवार्य शर्त है। अनुपालन, एक पारदर्शी तंत्र के निर्माण खंड के रूप में काम करते हैं ताकि मतदाताओं को संसूचित विकल्प निर्मित करने के लिए अपेक्षित राजनीतिक दलों के मामलों के बारे में सूचित किया जा सके। अपेक्षित अनुपालन के अभाव में, मतदाता और निर्वाचन आयोग अंधेरे में रह जाते हैं। इसके अलावा, इन सभी उल्लिखित नियामक अपेक्षाओं का आयोग के स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी निर्वाचन कराने के संवैधानिक अधिदेश पर सीधा असर पड़ता है।
उपर्युक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, चुनावी लोकतंत्र की शुद्धता के साथ-साथ व्यापक जनहित में तत्काल सुधारात्मक उपाय अपेक्षित हैं। इसलिए, आयोग स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी निर्वाचन प्रक्रिया सुनिश्चित करने के अपने अधिदेश का निर्वहन करते हुए निदेश देता है कि:
i) 86 निष्क्रिय आरयूपीपी, आरयूपीपी के रजिस्टर की सूची से हटा दिए जाएंगे और चुनाव चिन्ह आदेश, 1968 के तहत लाभ पाने के हकदार नहीं होने के लिए स्वयं उत्तरदायी होंगे।
ii) लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29क के तहत आयोग द्वारा अनुरक्षित आरयूपीपी के रजिस्टर में 253 आरयूपीपी को ‘निष्क्रिय आरयूपीपी’ के रूप में चिह्नित किया गया है।
iii) ये 253 आरयूपीपी निर्वाचन चिन्ह (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के तहत कोई भी लाभ प्राप्त करने के लिए पात्र नहीं होंगे।
iv) इससे व्यथित कोई भी पक्ष, इस निर्देश के जारी होने के 30 दिनों के भीतर संबंधित मुख्य निर्वाचन अधिकारी/निर्वाचन आयोग से अस्तित्व के सभी साक्ष्य, अन्य कानूनी और नियामक अनुपालन सहित वर्षवार (चूक के सभी वर्षों के लिए) वार्षिक लेखा परीक्षित खाते, अंशदान रिपोर्ट, व्यय रिपोर्ट, वित्तीय लेनदेन (बैंक खाते सहित) के लिए अधिकृत हस्ताक्षरकर्ताओं सहित पदाधिकारियों के अद्यतन विवरण के साथ संपर्क कर सकता है।
v) इन 253 आरयूपीपीएस में से 66 आरयूपीपी, जिन्होंने विभिन्न निर्वाचनों में पैरा 10ख के तहत एकसमान चिन्ह की मांग की थी, लेकिन संबंधित आम चुनावों के लिए कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया था, उन्हें (उपरोक्त बिंदु iii) के अलावा, यह स्पष्ट करना भी आवश्यक होगा कि “ऐसी दंडात्मक कार्रवाई के लिए उनको उत्तरदायी बनाने के लिए चुनाव चिन्ह आदेश के पैरा 10 ख में यथा अधिदेशित आगे की कार्रवाई, जिसे आयोग उचित समझे” क्यों नहीं की जानी चाहिए।